‘जो उस मूलस्रोत को देख लेता है...’ यह बुद्ध का वचन बड़ा अदभुत है: ‘वह अमानुषी रति को उपलब्ध हो जाता है।’ वह ऐसे संभोग को उपलब्ध हो जाता है, जो मनुष्यता के पार है। जिसको मैंने ‘संभोग से समाधि की ओर’ कहा है, उसको ही बुद्ध अमानुषी रति कहते हैं। एक तो रति है मनुष्य की—स्त्री और पुरुष की। क्षण भर को सुख मिलता है। मिलता है?—या आभास होता है कम से कम। फिर एक रति है, जब तुम्हारी चेतना अपने ही मूलस्रोत में गिर जाती है; जब तुम अपने से मिलते हो। एक तो रति है—दूसरे से मिलने की। और एक रति है—अपने से मिलने की। जब तुम्हारा तुमसे ही मिलना होता है, उस क्षण जो महाआनंद होता है, वही समाधि है। संभोग में समाधि की झलक है; समाधि में संभोग की पूर्णता है।
ओशो
प्रवचन 1 : संभोग : परमात्मा की सृजन-ऊर्जा
प्रवचन 2 : संभोग : अहं-शून्यता की झलक
प्रवचन 3 : संभोग : समय-शून्यता की झलक
प्रवचन 4 : समाधि : अहं-शून्यता, समय-शून्यता का अनुभव
प्रवचन 5 : समाधि : संभोग-ऊर्जा का आध्यात्मिक नियोजन
प्रवचन 6 : यौन : जीवन का ऊर्जा-आयाम
प्रवचन 7 : युवक और यौन
प्रवचन 8 : प्रेम और विवाह
प्रवचन 9 : जनसंख्या विस्फोट
प्रवचन 10 : विद्रोह क्या है
प्रवचन 11 : युवक कौन
प्रवचन 12 : युवा चित्त का जन्म
प्रवचन 13 : नारी और क्रांति
प्रवचन 14 : नारी—एक और आयाम
प्रवचन 15 : सिद्धांत, शास्त्र और वाद से मुक्ति
प्रवचन 16 : भीड़ से, समाज से—दूसरों से मुक्ति
प्रवचन 17 : दमन से मुक्ति
प्रवचन 18 : न भोग, न दमन—वरन जागरण